News Uttaranchal : प्रदेश के लगातार सूखते जा रहे प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए वैज्ञानिकों ने एक उम्मीद की किरण जगा दी है। टिहरी के तीन गांवों (थान, सुनारकोट व टिपली) में सूखने की कगार पर पहुंच चुके वर्षों पुराने जल स्त्रोतों को अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने पुनर्जीवित कर दिया है। राष्ट्रीय हिमालयीय अध्ययन मिशन के प्रोजेक्ट के तहत तीन साल में यह प्रयास रंग लाए हैं।
प्रदेश में तेजी से प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं। 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। 1290 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51-75 प्रतिशत पानी सूख चुका है और 2873 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी कम हो चुका है। इन्हें बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
इसी क्रम में, टेरी स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज दिल्ली, डीएवी पीजी कॉलेज और जल संस्थान ने संयुक्त रूप से टिहरी के पांच गांवों टिपली, सुनारकोट, खांकर, थान व बिडन का अध्ययन किया। यहां के जल स्रोतों में महज 15 से 25 प्रतिशत तक ही पानी बचा था, जिससे हजारों की आबादी चिंतित थी। तीन साल की मेहनत के बाद टिपली, सुनारकोट व थान गांव के जल स्त्रोत पुनर्जीवित हुए और 80 प्रतिशत से अधिक जल मिलने लगा है।
राजधानी में ही तमाम ऐसी सरकारी इमारतें हैं, जिनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग का इंतजाम नहीं है। इस वजह से हर साल बरसात का पानी जमीन के भीतर जाने के बजाए पाइप व नालियों के माध्यम से बह जाता है। वैज्ञानिकों का तर्क है कि अगर यही बरसात का पानी जमीन के भीतर जाएगा तो निश्चित तौर पर जल स्तर बढ़ेगा। इसके लिए बाकायदा नीति भी बनाई गई थी लेकिन अभी तक इसका अमल धरातल पर नहीं आ पाया।
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