उत्तराखण्ड :: में बढ़ी 118 बाघों की संख्या, अब 560 पहुंची, राज्यवार जारी हुए आंकड़े

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बाघों की संख्या को लेकर शनिवार को राज्यवार आंकड़े जारी किए गए। इस पर वनाधिकारियों और वन्यजीव प्रेमियों की निगाह लगी हुई थी।  प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ी है। 2022 की गणना के अनुसार बाघों की संख्या 560 है।

जबकि 2018 में बाघों की संख्या 442 थी।

उम्मीद पहले से ही जताई जा रही थी कि इस बार उत्तराखंड में बाघों के मामले में स्थिति में और सुधार आएगा और बाघों की संख्या का आकड़ा पांच सौ से अधिक पहुंच सकता है। पिछली बार राज्य बाघों के मामले में देश में तीसरे स्थान पर था, इस बार पायदान में एक स्थान ऊपर पहुंच सकता है।

 

2018 में बाघों की गणना में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर रहा, यहां बाघों की संख्या 526 रही। दूसरे स्थान पर 524 बाघों के साथ कर्नाटक रहा था जबकि उत्तराखंड में 442 बाघ रिपोर्ट हुए थे और वह तीसरे स्थान पर था। पिछली बार कार्बेट पार्क में 252 बाघ रिपोर्ट हुए थे जबकि पश्चिम वृत्त के अधीन आने वाले रामनगर, हल्द्वानी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय और तराई पूर्वी वन प्रभाग में 140 से अधिक बाघ मिले थे। राजाजी नेशनल पार्क से लेकर चंपावत और नैनीताल वन प्रभाग में बाघ मिले थे।

भीमताल जैसे इलाकों में बाघ का मूवमेंट मिला

इस बार भी भीमताल जैसे इलाकों में बाघ का मूवमेंट मिला है। इसके अलावा पिछले वर्ष के आंकड़े देखे तो 2010 से 2014 के बीच 113 बाघ बढ़े थे, 2014 से 2018 के बीच 102 बाघ बढ़े थे। उम्मीद की जा रही है कि बाघों की संख्या के मामले में और सुधार आएगा। तराई आर्क लैंड स्केप में बाघों की संख्या पांच सौ या उससे अधिक पहुंच सकती है। पायदान में भी सुधार की उम्मीद लगाई जा रही है।

जहां नहीं दिखते थे, अब वहां भी दिख रहे बाघ
रामनगर (नैनीताल)। ऐसा नहीं है कि बाघों की संख्या केवल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही बढ़ रही हो। इससे सटे जंगलों और आसपास के इलाकों में भी बाघ देखे जा रहे हैं। सीतावनी रिज़र्व फाॅरेस्ट, रामनगर-हल्द्वानी मार्ग और मालधन क्षेत्र में बाघ रिपोर्ट होना अच्छा संकेत है। कॉर्बेट लैंडस्केप में बाघों के रहने की जो आदर्श संख्या है, घनत्व के हिसाब से अधिक है। ऐस में बाघों का रहने का क्षेत्रफल सिकुड़ रहा है और इनके बीच आपसी संघर्ष भी बढ़ रहा है।

ऐसे में जो ताकतवर है वो अंदर रहेगा और जो कमज़ोर है वह इलाके से भागेगा। कॉर्बेट से सटे हुए कई गांव और खत्ते हैं और ऐसे में इलाका छोड़कर भागे बाघ इन गांवों के आसपास अपनी सीमा बना लेते हैं और पालतू मवेशियों का शिकार करते हैं। कभी-कभी इंसान भी इनका शिकार बन जाते हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए लिविंग विद लैपर्ड, लिविंग विद टाइगर जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों के तहत स्थानीय जनता को जागरूक किया जा रहा है कि वह कैसे वन्यजीवों से अपनी सुरक्षा करें। आबादी के आसपास बाघ या तेंदुआ दिखने पर वनकर्मियों को सूचित करें।

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