9 January 2025

Somnath Temple: क्या प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी बना था सोमनाथ मंदिर, नेहरू ने उस वक्त किस बात का किया था विरोध?

0
somnath
Share This News

अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पहुंचकर नए मंदिर में भगवान के बाल रूप की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। इस समारोह के लिए देश की कई जानी मानी हस्तियों को न्योता भेजा गया है।

देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस समारोह से दूरी बनाने की घोषणा की है। इसका कारण गिनाते हुए पार्टी ने कहा कि अयोध्या में आधे-अधूरे मंदिर का उद्घाटन हो रहा है। सत्ताधारी दल भाजपा ने कांग्रेस के फैसले की कड़ी आलोचना की है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा समेत पार्टी के कई नेताओं ने यह भी दावा किया कि पुनर्निर्माण के बाद सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह का तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और कांग्रेस ने विरोध किया था।

सोमनाथ मंदिर कहां है? इस मंदिर का क्या इतिहास है? इसका पुनर्निर्माण कब हुआ था? मंदिर का उद्घाटन कब हुआ था? क्या कांग्रेस ने इसका विरोध किया था? आइये जानते हैं… 

 

 

सोमनाथ मंदिर कहां है और कब बना था?
सोमनाथ मन्दिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित एक अत्यन्त प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मन्दिर है। इसे भारत के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

सोमनाथ ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, यह मंदिर कपिला, हिरण और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर का समय 649 ईसा पूर्व से पता लगाया जा सकता है लेकिन माना जाता है कि यह उससे भी पुराना है।

कहा जाता है कि सोमराज (चंद्र देवता) ने सबसे पहले सोमनाथ में सोने से बना एक मंदिर बनवाया था। इसका पुनर्निर्माण रावण ने चांदी से, कृष्ण भगवान ने लकड़ी से और भीमदेव ने पत्थर से किया था। कालांतर में मंदिर ने अपने आकर्षण और समृद्धि की वजह से कई आक्रांताओं के हमले झेले।

 

 

मंदिर कब टूटा और किसने तोड़ा?
सबसे पहले 1024 में अफगानिस्तान के गजनी का कुख्यात लुटेरा महमूद गजनवी यहां आया था। उस समय मंदिर इतना समृद्ध था कि इसमें 300 संगीतकार, 500 नर्तकियां और यहां तक कि 300 नाई भी थे। महमूद ने दो दिन की लड़ाई के बाद शहर और मंदिर पर कब्जा कर लिया। कहा जाता है कि इस लड़ाई में 70,000 रक्षकों ने अपने जीवन की आहुति दी। मंदिर से कीमती संपत्ति लूटकर महमूद गजनवी ने उसे नष्ट कर दिया। इस प्रकार मंदिर ने ध्वंस और पुनर्निर्माण का एक लंबा दौर झेला जो सदियों तक जारी रहा। बाद में 1297, 1394 और 1706 में भी मंदिर पर आक्रांताओं की बुरी नजर पड़ी। औरंगजेब ने 1706 में आखिरी बार सोमनाथ मंदिर तुड़वाया। उसके बाद 1950 तक मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं किया गया।

…तो मंदिर का पुनर्निर्माण कब हुआ और किसने कराया?
सोमनाथ मंदिर के मौजूदा स्वरूप का पुनर्निर्माण साल 1951 में किया गया था। मंदिर का निर्माण गुजरात के सोमपुरी मंदिर निर्माताओं ने किया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में हुए खर्च को लेकर तब सरकार में ही कई लोग इसके पक्ष और विपक्ष में खड़े थे। देश की स्वतंत्रता से पहले केएम मुंशी ने प्राचीन मंदिर के खंडहरों का दौरा किया और मंदिर की रक्षा करने में देश की असमर्थता पर निराशा जाहिर की। 1922 की यात्रा का वर्णन मुंशी ने अपनी पुस्तक ‘सोमनाथ: द श्राइन इटरनल’ (1976) में किया है।

सरदार पटेल ने की थी मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा 
देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ का दौरा किया और एक सार्वजनिक सभा में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा की। जब केएम मुंशी ने सरदार पटेल के साथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव देने के लिए महात्मा गांधी से संपर्क किया तो गांधी जी सहमत हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार को नहीं, बल्कि लोगों को खर्च वहन करना चाहिए। इसके बाद मुंशी को अध्यक्ष बनाकर एक ट्रस्ट बनाया गया।

भारत सरकार और सौराष्ट्र सरकार के न्यासी बोर्ड में दो-दो प्रतिनिधि शामिल थे। मुंशी की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति की स्थापना की गई और पुरातत्व महानिदेशक को संयोजक बनाया गया। 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी मुंशी के कंधों पर आ गई। हालांकि, इसी समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुंशी द्वारा मंदिर के पुनर्निर्माण को भारत सरकार से जोड़ने का विरोध किया।

जानी-मानी इतिहासकार रोमिला थापर अपनी पुस्तक ‘सोमनाथ दी मेनी वॉइसेस ऑफ हिस्ट्री’ में लिखती हैं, ‘प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस तथ्य का खंडन किया था कि मंदिर का पुनर्निर्माण भारत सरकार कर रही है। नेहरू के लिए ऐसी गतिविधि सरकारी गतिविधि के रूप में मंजूर नहीं थी और एक धर्मनिरपेक्ष देश पर शासन करने वाली धर्मनिरपेक्ष सरकार की नीति के लिए अहितकर थी।’

उद्घाटन का कार्य सरकारी नहीं: नेहरू 
रोमिला ने अपनी किताब में 2 मई 1951 को मुख्यमंत्रियों को संबोधित एक पत्र में नेहरू के बयान का भी उल्लेख किया है। नेहरू कहते हैं, ‘आपने सोमनाथ मंदिर में होने वाले समारोहों के बारे में पढ़ा होगा। कई लोग इसकी तरफ आकर्षित हुए हैं और मेरे कुछ सहयोगी तो व्यक्तिगत हैसियत से भी इससे जुड़े हैं। लेकिन यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यह कार्य सरकारी नहीं है और भारत सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। हमें यह याद रखना होगा कि हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष होने के रास्ते में आए। यह हमारे संविधान का आधार है और इसलिए सरकारों को ऐसी किसी भी चीज से खुद को जोड़ने से बचना चाहिए जो हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रभावित करती हो।’

नेहरू नहीं चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद ज्योतिर्लिंग के उद्घाटन में जाएं 
8 मई 1950 को सातवें सोमनाथ मंदिर की आधारशिला रखी गई। वहीं 11 मई 1951 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रथम ज्योतिर्लिंग का उद्घाटन किया। हालांकि, पंडित नेहरू राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के ज्योतिर्लिंग के उद्घाटन समारोह में जाने के खिलाफ थे। 2 मार्च 1951 को राजेंद्र प्रसाद को लिखे एक पत्र में नेहरू कहते हैं, ‘मुझे आपका खुद को सोमनाथ मंदिर के शानदार उद्घाटन से जोड़ने का विचार पसंद नहीं है। यह केवल एक मंदिर का दौरा करना नहीं है, बल्कि एक अहम समारोह में भाग लेना है जिसके दुर्भाग्य से कई निहितार्थ हैं। मुझे लगता है कि बेहतर होगा कि आप इस समारोह की अध्यक्षता न करें।’

हालांकि, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की सलाह को नजरअंदाज कर दिया और समारोह में भाग लिया। सोमनाथ में अपने भाषण में प्रसाद ने बताया कि मंदिर का पुनर्निर्माण पुराने घावों को भरना नहीं था, बल्कि प्रत्येक जाति और समुदाय को पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने में मदद करना था।

उधर कुछ गुजराती समाचार पत्रों ने लिखा कि सौराष्ट्र सरकार ने मंदिर के निर्माण में करीब पांच लाख रुपये की धनराशि का योगदान दिया है। इन रिपोर्टों से भी नेहरू नाखुश थे। मंदिर के उद्घाटन के बाद भी  कई साल तक इसका पुनर्निर्माण चलता रहा।

मंदिर की आधारशिला रखने के 45 साल बाद पूरा हुआ पुनर्निर्माण 
सोमनाथ ट्रस्ट के अनुसार, 1 दिसंबर 1995 को सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण पूरा हुआ था। उस वक्त देश के राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने यह मंदिर देश को समर्पित किया। वर्तमान में ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जबकि सरदार पटेल इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष थे।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!