आकलन: सौर क्रांति की शुरुआत, सूर्योदय योजना ने दिया नया जीवन

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आंकड़े गवाह हैं कि भारत को जितने कच्चे तेल की जरूरत है, उसके 86 फीसदी से ज्यादा का वह आयात करता है। दरअसल, भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता का तकरीबन आधा हिस्सा कोयला-आधारित है। ऐसे में, अर्थव्यवस्था की गति बनाए रखने के लिए जरूरी है कि भारत ज्यादा से ज्यादा कोयले का उत्पादन करे, ताकि कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों को ईंधन मिलता रहे। लेकिन इससे होने वाले वायु प्रदूषण का क्या, जो खासकर शहरों के निवासियों के लिए प्राणघातक बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि वैश्विक ऊर्जा की कुल मांग का 25 फीसदी हिस्सा अगले दो दशकों में भारत से होने की उम्मीद है।

 

जाहिर है कि ये आंकड़े सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। भारत के ज्यादातर हिस्सों में साल के तीन सौ दिनों तक धूप रहती है। यही वजह है कि सौर ऊर्जा उत्पादन को 70 गीगावॉट से ज्यादा बढ़ाते हुए भारत सौर ऊर्जा के मामले में दुनिया में चौथे पायदान पर है और 2030 तक इसका 280 गीगावॉट बिजली पैदा करने लक्ष्य भी है। इसमें कतई संदेह नहीं कि वर्तमान क्षमता और इस लक्ष्य के बीच अंतराल बड़ा है। लेकिन यह भी गौर करने लायक है कि राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान द्वारा मूल्यांकित 748 गीगावॉट क्षमता का फकत दसवां हिस्सा ही फिलहाल उपयोग में लाया जा रहा है। बदलाव की क्रांति के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास करने होते हैं।

भारत में सौर ऊर्जा की कहानी महज मेगावॉट की महत्वाकांक्षाओं में सिमट गई है, जिनमें रूफटॉप सोलर क्रांति खो-सी गई है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद का अनुमान है कि भारत में आवासीय छतों पर सोलर रूफटॉप के जरिये करीब 637 गीगावॉट बिजली पैदा की जा सकती है। जाहिर है कि हम महत्वपूर्ण लक्ष्यों से चूक रहे हैं। 2015 में सरकार ने रूफटॉप सोलर के लिए 2022 तक 40 गीगावॉट का लक्ष्य रखा था। लेकिन 2023 के अंत में कुल ऊर्जा उत्पादन में रूफटॉप सोलर की हिस्सेदारी 11 गीगावॉट से कुछ ही ज्यादा रही और इसका ज्यादातर हिस्सा चार राज्यों तक सीमित रहा।

हाल ही में मोदी ने प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना (पीएमएसवाई) की घोषणा की, जिसके तहत एक करोड़ घरों की छत पर सौर प्रणाली स्थापित की जाएगी। इस घोषणा के बाद उम्मीद है कि इनकी लागत में भी कुछ कमी आएगी। महत्वपूर्ण यह भी है कि इससे एक करोड़ घरों के अनुभव के आधार पर आगे के विस्तार के लिए नीति को संशोधित करने का भी अवसर मिलेगा। उल्लेखनीय है कि भारत की जनसंख्या करीब 1.4 अरब है। अगर हम हर परिवार में पांच लोगों का औसत लेकर चलें, तो इसका अर्थ होगा कि देश में करीब 28 करोड़ परिवार हैं।

आंकड़े बताते हैं कि भारत में परिवार सवा तीन लाख गीगावॉट से ज्यादा बिजली खर्च करते हैं। यानी प्रति व्यक्ति औसत खपत 1,255 किलोवॉट/ घंटे होगी। स्वाभाविक है कि शहरी परिवारों में बिजली की खपत ज्यादा भी होगी। शहरीकरण की गति, कंप्यूटर/मोबाइल इत्यादि उपकरणों का बढ़ता उपयोग, डिजिटलीकरण इत्यादि को देखते हुए इसमें संदेह नहीं कि बिजली की खपत और मांग, दोनों बढ़ेंगी।

भारत की एक-तिहाई आबादी शहरों में रहती है और इनमें 53 शहर ऐसे हैं, जहां दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। कस्बों की संख्या चार हजार है। ऊर्जा सुरक्षा की कोई भी पहल मौजूदा और नई इमारतों की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की मांग करती है। गौरतलब है कि यूरोप के देशों ने 2028 तक नई और मौजूदा इमारतों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के घटक को अनिवार्य कर दिया है। रियल एस्टेट (विनिमयन और विकास) अधिनियम और नगरपालिका के नियमों के तहत सरकार सभी नए आवासीय और वाणिज्यिक परिसरों की छतों पर रूफटॉप सोलर संयंत्रों की स्थापना को अनिवार्य कर सकती है। हालांकि रूफटॉप सोलर का विस्तार इस संबंध में बनने वाली नई नीति के स्वरूप पर भी निर्भर करता है।

यह न मानने का कोई आधार नहीं है कि लागत व व्यवधान कम करने और प्रदूषण फैलाने वाले जेनरेटर से छुटकारा पाने के लिए लोग प्रभावी व स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प चुनना पसंद करेंगे। रूफटॉप सोलर पर दिए जा रहे जोर के पीछे के अर्थशास्त्र को समझने की जरूरत है। निजी स्तर पर देखें तो घरों में, छोटे व्यवसायों को इससे सस्ती बिजली मिलेगी और ब्लैक आउट से मुक्ति मिलेगी। राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो इससे आयातित ईंधन पर निर्भरता कम होगी और अर्थव्यवस्था की गति को बरकरार रखने में भी मदद मिलेगी।

उल्लेखनीय है कि तीन किलोवॉट के रूफटॉप संयंत्र का इंस्टालेशन सहित कुल खर्चा करीब तीन लाख रुपये है, जिसमें 40 फीसदी सब्सिडी का भी प्रावधान है। हालांकि ज्यादा क्षमता का संयंत्र चाहने वाली हाउसिंग सोसाइटीज के लिए यह खर्च जरूर बढ़ जाएगा और उन्हें सब्सिडी भी कम मिलती है। नेट मीटरिंग फॉर्मूले को लेकर, जिसके तहत सौर ऊर्जा से प्राप्त अधिशेष बिजली को ग्रिड को लौटा कर, उससे क्रेडिट पाया जा सकता है, विद्युत वितरण कंपनियां पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। शायद इसीलिए, महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग के समक्ष एक सुनवाई में राज्य की बिजली वितरण कंपनी ने तर्क दिया कि छत पर सोलर संयंत्र उपभोक्ताओं द्वारा खुद के उपयोग के लिए लगाया जाता है, इसलिए अधिशेष बिजली के निर्यात को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। इससे भी बुरी बात यह है कि रूफटॉप सोलर के लिए कर्ज पर ब्याज दर दस फीसदी से ज्यादा है। इसके विपरीत यूरोपीय संघ और अमेरिका के निवासियों को इसे लेकर ब्याज दरों में भारी छूट मिलती है।

इस संदर्भ में प्रगति के लिए जरूरी है कि प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। रूफटॉप सोलर लगाने के इच्छुक लोग भी हैरान होते हैं कि इसकी प्रक्रिया घर में इन्वर्टर लगाने जितनी आसान क्यों नहीं है? दरअसल, इसे लगवाने की अनुमोदन प्रक्रिया विलंब और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है, जिसमें करीब तीन महीने तक का समय लग सकता है। दरअसल, रूफटॉप सोलर संबंधी किसी भी योजना की कामयाबी के लिए जरूरी है कि उसके लिए माहौल तैयार किया जाए। जैसे एलईडी बल्बों का उपयोग बढ़ाने के लिए सब्सिडी का सहारा लिया गया, यूपीआई का विस्तार उद्यमियों द्वारा बनाए गए समाधानों से हुआ इत्यादि। ऊर्जा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण की जरूरत है, लेकिन इसके लिए अनुदानों की व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ पूरी प्रक्रिया को दोष रहित करना और मानसिकता को बदलना भी जरूरी है।

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