10 January 2025

नमकवाली आंटी: लोगों की जुबां पर चढ़ा शशि के बनाए नमक का स्वाद, एक आइडिया ने बदली जिंदगी, खड़ा किया ब्रांड

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Namak
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‘नमकवाली’ ब्रांड के नाम से देशभर में पहाड़ के ‘पिस्यूं लूण’ (पिसा हुआ नमक) का जायका बिखेर रही शशि बहुगुणा रतूड़ी आज उत्तराखंड में खूब नाम कमा रही है। पौड़ी जिले के यमकेश्वर स्थित ग्वाड़ी की रहने वाली शशि बहुगुणा रतूड़ी अपनी इस कामयाबी का बड़ा श्रेय अपने पति और परिवार के साथ ही सोशल मीडिया को भी मानती है। वर्तमान में वह देहरादून के थानो क्षेत्र में काम कर रही हैं।

उनके साथ 15 महिलाएं ‘पिस्यूं लूण’ तैयार कर अपनी आर्थिकी को संवार रहीं हैं। ‘नमकवाली’ ब्रांड से जुड़कर पहाड़ के कई गांवों की महिलाएं और किसान भी मोटा अनाज, दाल, मसाले और बदरी घी बेच रहे हैं। शशि बहुगुणा  रतूड़ी ने अपने इस सफर के बारे में बताया…

 

सवाल: ‘नमकवाली’ ब्रांड खड़ा करने के पीछे क्या कहानी है? कहां से शुरू हुआ था ये सफर?
जवाब: शुरुआत में हम लोग पहाड़ी गीत और मांगल गीत गाते थे। इन्हीं गीतों के अभ्यास के दौरान अक्सर एक महिला घर से लूण पीसकर लाती थी, जो हम सबको बेहद पसंद आता था। महिलाएं उससे रोज नमक मंगवाया करती थी। बस यहीं से मुझे पिस्यूं लूण को देश-दुनिया तक पहुंचाने का विचार आया। तीन महिलाओं के साथ लूण पीसने का काम शुरू किया और बिक्री के लिए सोशल मीडिया की मदद ली। धीरे-धीरे नमक की मांग बढ़ने लगी और आज वह महीनेभर में एक कुंतल किलो पिस्यूं लूण बेच रही हैं।

 

सवाल: कितने साल हो गए हैं इस व्यवसाय को शुरू हुए और सोशल मीडिया से कैसे मदद मिली?
जवाब : हमने 2018 में इस पहाड़ी नमक को बनाने की शुरुआत की थी। 2020 में हमने अपनी वेबसाइट बनाई। साथ ही, इसे अमेजन पर भी बेचना शुरू किया। हमारे बनाए नमक को खरीदने वाले हमारे राज्य के लोग नहीं है, बल्कि बाहरी राज्यों के हैं और उन तक पहुंचने का रास्ता सोशल नेटवर्क बना। फेसबुक, वेबसाइट के जरिए लोगों की डिमांड हम तक पहुंची। अगर हमने सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल नहीं किया होता तो आज हम अपने काम को देशभर तक नहीं पहुंचा पाते।

सवाल: पहाड़ी नमक के साथ ही क्या और उत्पाद भी आप बनाती हैं?
जवाब : जी हां, पहले हम केवल पहाड़ी नमक ही बनाते थे, लेकिन फिर हमने कई और उत्पाद इसमें शमिल किए। अदरक फ्लेवर, लहसुन फ्लेवर और मिक्स फ्लेवर नमक बनाने के साथ ही मैजिक मसाले, अरसे, रोट, अचार, भी बनाते हैं। इसके अलावा बदरी गाय के दूध से तैयार घी और मैजिक मसालों की भी जबरदस्त मांग है।

 

सवाल: शुरुआत में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जवाब: कोई एक चुनौती नहीं थी। किसी भी काम को करते वक्त शुरुआत में चुनौतियां तो आती ही हैं। जो लोग कभी तरह-तरह के नामों से बुलाते थे, आज वही सम्मान देते हैं। मुझे एक सबसे बड़ी चुनौती लगती थी, अपनी पहाड़ का नाम खराब न हो। इसलिए मेरे यहां से जो भी उत्पाद देशभर में जाए उसे बेहतर ढंग से बनाया जाए और पूरे सम्मान के साथ भेजा जाए। इसमें मैं काफी हद तक सफल भी हुई। तभी तो लगातार मांग बढ़ती गई।

 

सवाल: आपके साथ ही क्या अन्य काम कर रही महिलाओं को आर्थिक संबल मिल रहा हैं?
जवाब : नमक पीसने के काम में मेरे साथ थानो, सत्यो, टिहरी, चंबा, उत्तरकाशी आदि स्थानों से 15 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं। इनमें स्थायी रूप से काम करने वाली महिलाएं एक माह में 10 हजार रुपये तक कमा लेती हैं, जबकि अस्थायी रूप से काम करने वाली महिलाओं को काम के अनुसार पारिश्रमिक दिया जाता है। इसके अलावा समूह से जुड़ी महिलाएं देशभर में आयोजित होने वाले स्वरोजगार मेलों में स्टाल भी लगाती हैं। लूण के अलावा समूह से जुड़ी महिलाएं 17 पहाड़ी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से मसाला तैयार करती। यह समूह गढ़वाल के पांच गांवों में भी काम कर रहा है, जिसमें उत्तरकाशी जिले की महिलाएं बदरी गाय के दूध से घी बनाने का काम करती हैं। साथ ही, जैविक दालें और हल्दी भी उनके प्रमुख उत्पादों में शामिल हैं।

 

 

सवाल: अपने व्यवसाय के अलावा और भी किसी काम के लिए आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं?
जवाब : उत्तराखंड की लोक परंपराओं को बचाने के लिए भी काम कर रही हूं। उत्तराखंड के मांगल गीतों को जीवित रखने के लिए एक महिला समूह बनाया है। महिला नवजागरण समिति के माध्यम से प्रदेशभर में महिला उत्थान और उत्तराखंड की लोक परंपराओं को बचाने के लिए भी काम कर रही हैं। पिस्यूं लूण को घर-घर पहुंचाने की कवायद भी इसी प्रयास का हिस्सा है।

 

सवाल: क्या आपको लगता है कि सोशल नेटवर्क महिलाओं के आगे लाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है?
जवाब : मैं 1982 से अलग-अलग मुद्दों को लेकर गांव-गांव में करती थी, लेकिन पहचान मुझे आज मिल रही है। इसकी वजह है सोशल नेटवर्क। शायद तब सोशल मीडिया होता तो उस दौर के कामों को भी देशभर में उतनी तवज्जो मिलती, जितनी आज मिल रही है। सोशल मीडिया ने तो आज रास्ते खोल दिए हैं। मैं दूर-दराज गांवों में जाकर महिलाओं के साथ काम करती हूं। मुझे हैरानी होती है कि महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन वह फेसबुक, वाट्सएप का इस्तेमाल बहुत आसानी से कर लेती हैं। लगभग हर महिला सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कर रही है। अपने द्वारा बनाए गए उत्पादों को बेचने के लिए वह सोशल मीडिया पर बाजार बना रही हैं।

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