रंगों और फूलों से होली के बारे में आपने जरूर सुना होगा। लेकिन उत्तराखंड में एक ऐसी जगह भी है, जहां पर सदियों से दूध-मक्खन की अनूठी होली खेली जाती है। जी हां, सदियों से उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में अंढूड़ी उत्सव(बटर फेस्टिवल) का आयोजन किया जाता है।
गुरुवार को भी 11 हजार फीट की ऊंचाई पर दयारा बुग्याल में दूध-मक्खन की होली खेली गई। उत्सव समेश्वर देवडोली और पांडव पश्वों के सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। कृष्ण और राधा के मटकी फोड़ने के बाद पंचगाई पट्टी सहित आस-पास के ग्रामीणों ने दूध-दही और मक्खन की होली खेली। गुलाल की जगह एक दूसरे पर लोगों ने दूध-मक्खन लगाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया।
सुबह दयारा पर्यटन उत्सव समिति के निमंत्रण पर पंचगाई रैथल सहित नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी के आराध्य देवता समेश्वर देवता की देवडोली सहित पांच पांडवों के पश्वा दयारा बुग्याल पहुंचे।
इसके साथ ही जनपद के अन्य स्थानों से भी स्थानीय लोग दयारा बुग्याल पहुंचे। जहां पर पहले पांच पांडव के पश्वा अवतरित हुए और उसके बाद समेश्वर देवता की देवडोली के साथ उनके पश्वा भी अवतरित हुए। लोक पंरपरा के अनुसार समेश्वर देवता ने डांगरियों पर चलकर मेलार्थियों को आशीवार्द दिया।
उसके बाद ग्रामीणों की बुग्याल में स्थित छानियों में एकत्रित दूध-दही और मक्खन को वन देवताओं सहित स्थानीय देवी-देवताओं को भोग चढ़ाया गया। उसके बाद राधा-कृष्ण ने मक्खन की हांडी को तोड़ा और उसके बाद बटर फेस्टिवल का जश्न शुरू हुआ। बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने उत्सव में प्रतिभाग किया।
बता दें कि यह उत्सव पारंपरिक और पौराणिक है। ग्रामीण बुग्यालों से अपने मवेशियों को जब अपने घरों की ओर वापसी करते हैं। तो इस मौके पर ग्रामीण दूध-दही मक्खन को वन देवताओं और स्थानीय देवताओं को चढ़ाकर आशीवार्द लेते हैं।
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