यमुनोत्री क्षेत्र में बेशकीमती भोजपत्र के जंगल पर संकट, ध्यान नहीं दिया तो हो जाएंगे विलुप्त
यमुनोत्री क्षेत्र में भूस्खलन और यमुना नदी के कटाव से बेशकीमती भोजपत्र के जंगल पर खतरा मंडरा रहा है। भोजपत्र के पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए शीघ्र पहल नहीं की गई तो यह विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगे। समुद्रतल से करीब चार हजार मीटर ऊंचाई पर पाए जाने वाले भोजपत्र का जंगल यमुनोत्री धाम से लगे गरूड़ गंगा के दाईं ओर फैला है।
2012 में जब यमुना नदी में बाढ़ आई थी, तब भी भू-कटाव से जंगल को काफी नुकसान पहुंचा था। हनुमान चट्टी डोडीताल ट्रैक रूट पर भी भोजपत्र के पेड़ों को हानि पहुंची थी। बावजूद इसके भोजपत्र के जंगलों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए कोई ठोस योजना नहीं बन पाई। क्षेत्र के अजबीन पंवार, अरविंद सिंह रावत, पवन उनियाल, नरेश पंवार, आलोक उनियाल, लोकेश चौहान का कहना है कि भोजपत्र के जंगलों को आपदा और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भू-कटाव के कारण बहुत नुकसान पहुंचा लेकिन संरक्षण के लिए योजना नहीं बनी। उन्होंने शासन-प्रशासन से भोजपत्र के जंगलों के संरक्षण के लिए योजना बनाने की मांग की है।
पूर्व प्रधानमंत्री को भोजपत्र पर भेंट किया गया अभिनंदन पत्र
1985 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार उत्तराखंड भ्रमण पर आए थे तो उस वक्त भाजपा नेता व चकबंदी के प्रेरणास्रोत स्व. राजेंद्र सिंह रावत ने उन्हें भोजपत्र पर लिखा अभिनंदन पत्र भेंट किया था।
प्रकृति की इस धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है। हमारे सनातन धर्म में इन वृक्षों को बड़ा महत्व है। इन्हें देव वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
– पुरुषोत्तम उनियाल, अध्यक्ष, पुरोहित महासभा यमुनोत्री धाम
दस साल की कार्ययोजना बनाई जा रही है, जिसमें ऐसे स्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया जा रहा है।
– एसपी गैरोला, रेंज अधिकारी, यमुनोत्री रेंज