Ramcharitmanas: रामचरित मानस की इन चौपाइयों में छिपा है हर समस्या का समाधान, आप भी जानें

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Ramcharitmanas Chaupai: मनुष्य का जीवन तीन भाव से बना है, पहला हर्ष, दूसरा शोक और तीसरा भय। हर्ष का अर्थ होता है खुशी, शोक यानी की दुःख और भय मतलब डर। अक्सर सफलता के रास्ते में डर रुकावट पैदा करता है। आमतौर पर इस डर को कम करने के लिए धार्मिक ग्रंथ पढ़ने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता बनी रहती हैं।

 

 

हम सभी के जीवन में कई तरह के उतार चढ़ाव आते हैं। इन परिस्थितियों से निकलने के लिए कई बार रास्ते नजर नहीं आते। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों में जीवन की हर समस्या का समाधान छिपा है। माना जाता है कि इसका पाठ करने से जन्म जन्मांतरों के पाप से मुक्ति, भय, रोग आदि सभी दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन जीने को लेकर नई प्रेरणा का भी प्राप्ति होती है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं उन चमत्कारी चौपाइयों व उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से।

 

रामचरितमानस की चौपाइयां

हरि अनंत हरि कथा अनंता ।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ॥
रामचंद्र के चरित सुहाए ।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए ॥

इसका अर्थ है कि हरि अनंत हैं उनका कोई पार नहीं पा सकता है। उनकी कथा भी अनंत ही है। सभी संत लोग उस कथा को बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। साथ ही ये पक्तिंया कहती हैं कि भगवान श्री रामचंद्र के सुंदर चरित्र का कोई बखान नहीं कर सकता क्योंकि सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।

जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करहिं सब कोई ॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया ।
तिनके हृदय बसहु रघुराया ॥

इसका अर्थ है जिन पर प्रभु श्री राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू नहीं सकता। जिन लोगों पर परमात्मा की कृपा हो जाती है उस पर तो सभी की कृपा बनी ही रहती हैं। जिसके अंदर कपट, झूठ और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति राम बसते हैं। साथ ही उनके ऊपर प्रभु की कृपा सदैव होती है।

अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर ।
काम क्रोध मद गज पंचानन, बसहु निरंतर जन मन कानन।।

इसका अर्थ है कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाला है। आप हमेशा ही अपने भक्तजनों के मन रूपी वन में निवास करने वाले हैं।

कहु तात अस मोर प्रनामा ।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

इस चौपाई का अर्थ है कि हे भगवान श्री राम! आपको मेरा प्रणाम और मेरा आपसे ये निवेदन है कि – हे प्रभु! अगर आप सभी प्रकार से पूर्ण हैं अर्थात आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है, तथापि दीन-दुखियों पर दया करना आपका प्रकृति है, अतः हे नाथ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा ।
को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा ।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा ॥

अर्थ है कि जो कुछ भी संसार में राम ने रच रखा है, वही होगा। इसलिए इस विषय में तर्क करने का कोई लाभ नहीं होगा। ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहां गईं जहां सुख के धाम प्रभु राम थे।

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