4 साल, 8 एक्सटेंशन बाद CAA लागू:31 हजार लोगों पर सीधा असर; मुसलमान क्यों डरे हैं, क्या फिर विरोध होगा

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पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने वाला कानून आज से पूरे देश में लागू हो गया। 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन कानून को मंजूरी दी थी। 6 महीने के भीतर नियम बनाकर इसे लागू करना था, लेकिन 4 साल के इंतजार और 8 बार तारीखें बढ़ाकर 11 मार्च को सरकार ने इसे लागू किया।

 

 

आइये जानते हैं कि आखिर क्या है नागरिकता संशोधन कानून? सीएए संसद से कब पारित हुआ था? नए कानून में क्या प्रावधान किए गए हैं? 

आखिर क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
नागरिकता संशोधन विधेयक से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है।

नागरिकता संशोधन विधेयक 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था। 9 दिसंबर 2019 को ही विधेयक सदन से पारित हो गया। 11 दिसंबर 2019 को यह विधेयक राज्यसभा से पारित हुआ था।

नए कानून में क्या प्रावधान हैं?
नागरिकता अधिनियम में देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रावधान किया गया है। आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी साल 11 महीने भारत में रहना चाहिए। कानून में छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) और तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से संबंधित व्यक्तियों के लिए 11 वर्ष की जगह छह वर्ष तक का समय है।

कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

कानून की मुख्य बातें क्या हैं?
नागरिकता अधिनियम, 1955 यह बताता है कि कौन भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है और किस आधार पर। कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक बन सकता है यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो या उसके माता-पिता भारतीय हों या कुछ समय से देश में रह रहे हों, आदि। हालांकि, अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है। अवैध प्रवासी वह विदेशी होता है जो: (i) पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समय अवधि से अधिक समय तक रहता है।

विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत अवैध प्रवासियों को कैद या निर्वासित किया जा सकता है। 1946 और 1920 अधिनियम केंद्र सरकार को भारत के भीतर विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को विनियमित करने का अधिकार देते हैं। 2015 और 2016 में, केंद्र सरकार ने अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को 1946 और 1920 अधिनियमों के प्रावधानों से छूट देते हुए दो अधिसूचनाएं जारी की थीं। ये समूह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। इसका मतलब यह है कि अवैध प्रवासियों के इन समूहों को निर्वासित नहीं किया जाएगा।

क्या होगा, क्या नहीं?
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, भारत के तीन पड़ोसी देशों से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का अधिकार देने का कानून है। नागरिकता संशोधन कानून के सन्दर्भ में कई गलतफहमियां फैली थीं। यह नागरिकता देने का कानून है, CAA से किसी भी भारतीय नागरिक के नागरिकता नहीं जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। यह कानून केवल उन लोगों के लिए है जिन्हें वर्षों से उत्पीड़न सहना पड़ा और जिनके पास दुनिया में भारत के अलावा और कोई जगह नहीं है।

कोरोना के कारण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में देरी हुई। लेकिन अब इसे हम लागू कर दिया गया है। भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव मैनिफेस्टो में कहा था कि वह पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।

 

 

 

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