बेबस आंखें: खाली घर-आंगन, जंगल बने खेत-खलिहान; वीरान हो चुके गांव पूछ रहे एक ही सवाल- क्या हम भी होंगे आबाद

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पलायन रोकने के दावे तो खूब हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ों के खाली और जनशून्य होते गांव, बंजर खेत और वीरान होती बाखलियां सिस्टम की उदासीनता और अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है राज्य गठन के बाद अल्मोड़ा संसदीय सीट पर चारों जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत में 269 गांव पूरी तरह से जनशून्य हो चुके हैं। कभी ये गांव महिलाओं, बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों की चहलकदी से गुलजार रहते थे जो अब वीरान हो चुके हैं।

 

 

इन गांवों से करीब  30 हजार से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा और इन गांवों को घोस्ट विलेज घोषित कर दिया गया। इन्हें फिर से आबाद करने की योजना पर काम नहीं हुआ। फिर से चुनावी रण चल रहा है और विकास के खूब दावे हो रहे हैं। इन वीरान गांवों का मुद्दा राजनीतिक दलों की जुबान से गायब है। तय है कि इन गांवों में नेताजी नहीं पहुंचेंगे। ये गांव अपने नेताओं से पूछ रहे हैं कि क्या भविष्य में हम कभी फिर से आबाद हो पाएंगे।

लॉकडाउन में हुआ रिवर्स पलायन, नहीं बदले हालात
पलायन पूरे प्रदेश के लिए नासूर बन गया है। खासकर पहाड़ी जिलों से खूब पलायन हुआ। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अभाव में इन गांवों पर पलायन की मार पड़ी। कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन के बाद युवाओं ने अपने गांवों की तरफ रुख किया। अपने मूल स्थान पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उन्हें अपनी आजीविका कमाने के लिए फिर से घर छोड़ना पड़ा और पलायन रोकने के दावे धराशाई हो गए।

 

अल्मोड़ा में सबसे अधिक पलायन
अल्मोड़ा। अल्मोड़ा जिला इस संसदीय सीट का केंद्र रहा है। इस संसदीय सीट से जीते नेताओं ने केंद्र से लेकर प्रदेश की सत्ता में अपना दबदबा कायम रखा। हैरानी की बात यह है कि पलायन के लिहाज से इस जिले के नाम कुमाऊं के अन्य जिलों में सबसे ऊपर दर्ज है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कुमाऊं के जिलों में अल्मोड़ा में सबसे अधिक पलायन हुआ है।
कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में जनशून्य हो चुके गांव
जिला          गांव
अल्मोड़ा       95
बागेश्वर         73
पिथौरागढ़    52
चंपावत        27
नैनीताल      22
कुल            269
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