पहाड़ी इलाकों में भीषण जल संकट की आहट…461 स्रोतों का 76 प्रतिशत से ज्यादा पानी सूखा
News Uttaranchal :
गढ़वाल विवि के प्रो. एमएस नेगी का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर पेयजल स्रोतों पर पड़ रहा है। अगर यह सूख गए तो प्रदेश में पेयजल का बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। इसके लिए हमें जंगलों की सुरक्षा करनी होगी।
गर्मियों की दस्तक के साथ ही उत्तराखंड में भीषण जल संकट के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। प्रदेश के 4624 गदेरे और झरनों में तेजी से पानी की कमी आने लगी है। इनमें से 461 पेयजल स्रोत तो ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से ज्यादा पानी कम हो गया है। पानी कम होने वाली स्रोतों में पौड़ी सबसे पहले स्थान पर है। जल संस्थान की ग्रीष्मकाल में पेयजल स्रोतों की ताजा रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है।
इनसे जुड़ी आबादी के लिए भी पेयजल संकट पैदा होने लगा है। जबकि 62 फीसदी (2873) पेयजल स्त्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी खत्म हो चुका है। जल संस्थान पेयजल संकट की वैकल्पिक व्यवस्था बनाने में जुट गया है। सचिव पेयजल नितेश झा ने भी जल संस्थान को जरूरी आवश्यकताएं पूरी करने को कहा है।